


यह पर्व सदाचार,परंपरा और सामाजिक एकता का प्रतीक है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु और मंगलमय भविष्य की कामना करती हैं. इस दौरान आदिवासी समाज अच्छे फसल की कामना करता है. बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं. करमा पर्व के दिन बहनें व्रत रखती हैं. रंग-बिरंगे नए वस्त्र पहनकर साज-शृंगार आभूषण पहनती हैं. जावा डाली को भी कच्चे धागे में गूंथे फूलों की माला से सजाया जाता है.
इस दिन महिलाएं पूजा स्थल पर करमैती करम के पत्ते पर खीरा रखकर पांच बार काजल और सिंदूर का टीका लगाती हैं, फिर उस पर अरवा चावलों का चूर्ण डालकर खीरे को गोल-गोल टुकड़ों में काटकर करम वृक्ष की शाखा में जगह-जगह पिरोया जाता है. खीरा पुत्र का प्रतीक माना जाता है. इसलिए खीरे को करम देव को समर्पित कर महिलाएं स्वस्थ पुत्र की कामना करती हैं.