
कमरूल आरफी
लातेहार। साहिल के सुकूँ से किसे इंकार है, लेकिन तूफ़ान से लड़ने में मज़ा ही कुछ और है. आल-ए-अहमद-सुरूर की इन पंक्तियों को वास्तव में आत्मसात किया है एक सखुआ के पेड़ ने. जो राष्ट्रीय राजमार्ग चतरा-रांची सड़क पर बालूमाथ शहर प्रवेश करने से ठीक पहले अवस्थित है. लगभग साल भर पहले एक मालवाहक ट्रक के चपेट में आने से जड़ से उखड़ चुके इस वन्य जीव को लगभग खत्म ही मान लिया गया था. लेकिन धरती से मिले सहारे ने फिर से इस पेड़ में जान डाल दिया है. पेड़ की पत्ते तो सियाह हो कर झड़ ही चुके थे. शाखें भी लगभग सूख कर निढाल हो चुकी थी. लेकिन जैसा इंसानों के बारे में कहा जाता है कि जबतक सांस है तबतक आस है.




