


कहा गया कि हजरत मोहम्मद के पैदाईस से पहले बच्चियों के जिंदा दरगोर कर दिया जाता था बेवाओं को जिंदा जलाया जाता था ऊंच नीच का भेद भाव चरम सीमा पर थी. लेकिन जब हज़रत मोहम्मद की पैदाइश हुई उसके बाद से ये सारे बुरे काम ख़त्म गया. लोग बेटी को रहमत समझने लगे बेवाओं के जीने का हक मिला छोटा बड़ा उंच नीच का भेद भाव भी खत्म हो गया. आगे ओलमाओ ने कहा कि हमें हज़रत मोहम्मद के जिवनी से सबक हासिल करना चाहिए और उनके बताए मार्ग पर चलना चाहिए। उनके बताए मार्ग पर चलकर ही कामयाबी हासिल किया जा सकता है।अपनी जिंदगी में उन्होंने बहुत तकलीफे बर्दाश्त की लेकिन हक का पैगाम लोगों तक पहुचाते रहें। हज़रत मोहम्मद के पैदाइश के खुशी में हर वर्ष 12 रबीउल अव्वल के दीन इनकी याद में ईद मिलादुन्नबी नबी मनाया जाता है।इस अवसर मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा मस्जिद,अपने घरों व गली मोहल्लों को लाईटें ,झंडी,परचम से बखुबी सजाया था।
वहीं डिपाटोली अंम्वाटोली,गुरगुटोली, आजाद मार्केट समेत अन्य स्थानों पर गेट भी बनाया गया था। जगह-जगह पर लंगर व फल फ्रूट का इंतजाम किया गया था जो भी लोग उस रास्ते से जाते उन्हें ये चीजें तकसीम की गई।मौके पर जामा मस्जिद से कारी अहमद रज़ा, हाफिज नदीम आख्तर कारी इकरामूल हक,मौलाना रफिउद्दीन, वहीं मस्जिदें गौसिया से हाफिज राकिब हुसैन, हाफिज खुर्शीद आलम अंजुमन के सदर इमरान अली मजूल अंसारी,सिक्रेट्री मजहर खान, सहाबुद्दीन ख़ान, खजांची शाहिद अहमद तस्वर अंसारी फिरोज अंसारी,डॉ जमशेद खान पूर्व सदर फहीम खान सहित सैकड़ों लोग शामिल थे. हुआडांड़ थाना प्रभारी के नेतृत्व में चौक चौराहों पर सुरक्षा व्यवस्था की गई थी।थाना प्रभारी मनोज कुमार खुद ही जुलूस वाले सारे रूट पर घुम कर सुरक्षा व्यवस्था की देख रेख कर रहे थे।सभी चौंक चौराहों पर मजिस्ट्रेट की नियुक्ति कर पुलिस बल की तैनाती की गई थी। वहीं जुलूस के साथ साथ भी पुलिस बल के जवान चल रहे थे। सुरक्षा व्यवस्था को लेकर जामिया,व गौसिया अंजुमन कमिटी व मुस्लिम समुदाय के लोगों ने प्रशासन को इस सराहनीय कार्य के लिए धन्यवाद दिया है।