लातेहार
जन सुनवाई में ऐलान: नौ अगस्त को वन भूमि पट्टा नहीं मिला तो होगा जन आन्दोलन
नौ अगस्त को आदिवासी के अवसर पर लंबित दावों का होगा वितरण: एसडीएम


लातेहर। 22 जुलाई को संयुक्त ग्राम सभा मंच (बरवाडीह) के तत्वावधान में वन अधिकार कानून (2006) के अधिकार के तहत लंबित सामुदायिक एवं व्यक्तिगत दावा भुगतान को ले कर कल्याण विभाग परिसर में जन सुनवाई कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस जन सुनवाई कार्यक्रम में लातेहार और गढ़वा जिले के गारू, मनिका, बरवाडी व चिनिया से हजारों आदिवासी व ग्रामीण शामिल हुए. जन सुनवाई कार्यक्रम का आयोजन संयुक्त ग्राम सभा मंच और ग्राम स्वशासन अभियान के संयुक्त तत्वधान में किया. जन सुनवाई में कहा गया कि अगर आदिवासी दिवस नौ अगस्त तक लंबित सामुदायिक व व्यक्तिगत वन भूमि पट्टा नहीं मिला तो जन आन्दोलन किया जायेगा. जेम्स हेरेंज जनसुवाई में रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि जो दावे अनुमंडल स्तरीय समिति में जमा हुए हैं, उसमे भारी कटौती हुई है.

बरवाडीह प्रखंड के 22 गांव से कुल 16050.5 एकड़ भूमि सामुदायिक अधिकार के लिए दावे किये गए लेकिन, इसमें से केवल 2.7 एकड़ भूमि ही स्वीकृत हुए. सामुदायिक वन अधिकार के दावित भूमि 99.99 प्रतशित की भारी कटौती की गयी है, 0.1 प्रतिशत से भी कम भूमि ग्राम सभाओं को स्वीकृत हुए हैं. उन्होंने कहा कि लातेहार जिला में अनुमंडल और जिला स्तरीय वनाधिकार समिति में करीब 98 सामुदायिक और 1700 व्यक्तिगत वनाधिकार दावा पत्र लंबित हैं. लातेहार जिले में 135 व्यक्तिगत दावों की अनुशंसा अनुमंडल स्तरीय समिति द्वारा जून 2019 में किया गया था लेकिन दावेदारों को पट्टा नहीं मिल पाया. जिला परिषद सदस्य बरवाडीह पूर्वी के कन्हाई सिंह ने वन विभाग के अधिकारी कानून के क्रियान्वन में कोताही कर रहे हैं. जंगल बचाने के नाम पर खाना-पूर्ति कर रहे. वहीं दूसरी ओर संयुक्त ग्राम सभा बरवाडीह के 16 गाँव के जंगलों में सीड बॉल के माध्यम से 20 हजार से ज्यादा पौधारोपण किया.

जन सुनवाई में कई ग्रामीणों ने कहा कि वन विभाग के अधिकारी ग्रामीणों को डराते है और जो अपने पशुओं को लेकर जंगल में जाते हैं या लकड़ी काटते हैं उनपर पर फर्जी तरीके से मुकदमा दर्ज करती है. यहाँ तक की टंगी, कोड़ी, कुदाल आदि वन विभाग के लोग छीन लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट आयुक्त के पूर्व राज्य सलाहकार बलराम ने कहा की वन अधिकार कानून का खुला उलंघन हो रहा और दावित भूमि में भारी कटौती हो रही. उन्होने दावों की स्वीकृति के लिए एक तय समय-सीमा सुनिश्चित करने कर मांग कर की.श्यामा ने अपनी बात रखते हुए कहा की हमे अपने अधिकार लेने के लिए लड़ते रहना होगा, बिना लड़े हमें वन अधिकार कानून के अंतर्गत पट्टा इन वन विभाग के अधिकारीयों से नहीं मिलेगा.




