लातेहार
न सिर्फ पर्यटन स्थल वरन झारखंड की समृद्ध विरासत को भी पहचान दिलाने में लगे हैं गोविंद पाठक

आशीष टैगोर
लातेहार। हरी भरी वादियां, उच्चे नींचे पर्वत, कल-कल बहती नदियां और जंगलों में महुआ और पलास की खुशबू, यह एक छोटा सा परिचय है हमारे झारखंड का. कहना गलत नहीं होगा कि प्रकृति ने लातेहार ही नहीं पूरे झारखंड को फुर्सत से संजोया है. झारखंड की मनमोहक व नयनाविराम वादियां बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है. लातेहार जिले में भी कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं जो सैलानियों के तफरीह के लिए एक मुरीद और माकूल जगह है. इनमें सबसे उपर नाम आता है नेतरहाट का. नेतरहाट की आबोहवा सालो भर खुशगवार रहती है. यही कारण है कि नेतरहाट में सालों भर सैलानियों का आना लगा रहता है.

नेतरहाट एवं आसपास के क्षेत्रों के कई ऐसे मनोरम दृश्य हैं जहां जा कर सैलानी अपनी सुधबुध खो बैठते हैं. सैलानियों को इन खुबसूरत वादियों का दीदार कराने का जिम्मा उठाया है लातेहार टूरिज्म और उसके फाउंडर गोविंद पाठक ने. गोविंद पाठक न सिर्फ लातेहार वरन झारखंड के पर्यटन स्थलों की सैर लातेहार टूरिज्म के माध्यम से कराते हैं. इतना ही पाठक पर्यटन स्थलों के अलावा झारखंड की परंपरागत व समृद्ध विरासत को भी पहचान देने में लगे हैं. लातेहार टूरिज्म के पास प्रशिक्षित चालक व गाईड की टीम है, जो पर्यटको को यहां के पर्यटन स्थल व समृद्ध और पौराणिक संस्कृति व विरासत से भी रूबरू कराते हैं.
सैलानियों को भेंट करते हैं सोहराई पेंटिंग
लातेहार टूरिज्म के गोविंद पाठक अपने टूरिस्टों को उनकी यात्रा को यादगार बनाने के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है. वे अपने टूरिस्टो को झारखंड की मशहूर सोहराई पेंटिंग भेंट करते हैं ताकि वे अपनी अपनी यात्रा को अविस्मरणीय बना सकें. श्री पाठक ने बातचीत करते हुए बताया कि लातेहार टूरिज्म और एनजीओ नेचुरल एंड ह्रयूमन रिर्सोस वेलफेयर फाउंडेशन के तत्वावधान में पर्यटकों को सोहराय पेंटिंग भेंट करते हैं.
उन्होने बताया कि अब तक एक हजार पर्यटकों को उपहार स्वरूप पेंटिंग भेंट कर चुके हैं. इन पेंटिंगों को रांची के स्टार्ट-अप के स्थानीय कलाकारों के द्वारा अपने हाथों से तैयार किया गया है. उनका उदेश्य उनके इस कला का प्रचार प्रसार व उन्हें आर्थिक सहयोग पहुंचाना है. उन्होने बताया कि आईआईटी पटना के डा दिनेश कोटनिस, प्रसिद्ध कलाकार नोबोनीता डे व अमिताभ मुखर्जी समेंत कई पर्यटकों को वे अपनी पेंटिंग भेंट कर चुके हैं. सबों ने श्री पाठक के इस प्रयास की सराहना की.

क्या है सोहराई पेंटिंग
सोहराई पेंटिंग झारखंड की एक पारंपरिक और सांस्कृतिक कला है. यह कला आदिवासी समुदायों, विशेषकर महिलाओं द्वारा, फसल कटाई के मौसम और त्योहारों के दौरान अपने घरों की दीवारों को सजाने के लिए की जाती है। ‘सोहराई’ शब्द स्वयं ‘सोहराई’ त्योहार से आया है.यह दिवाली के बाद मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पशुधन त्योहार है. इस पेंटिंग की सबसे खास बात यह है कि इसे प्राकृतिक रंगों और मिट्टी का उपयोग करके बनाया जाता है.
कलाकार विभिन्न रंगों की मिट्टी, जैसे लाल, काली, सफेद और पीली मिट्टी का उपयोग करते हैं, जिन्हें पानी में घोलकर पेस्ट बनाया जाता है. फिर, वे अपनी उंगलियों, कपड़े के टुकड़ों या बांस की पतली छड़ियों का उपयोग करके दीवारों पर चित्र बनाते हैं. सोहराई पेंटिंग में अक्सर प्रकृति, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और दैनिक जीवन के दृश्यों को दर्शाया जाता है. हाल के वर्षों में, इस पारंपरिक कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है. इसे संरक्षित करने और बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं.




