


अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है. लातेहार के कई घरों में महिलाओं ने आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर कथा सुनी और परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना की. बज्रांग देव सेवा संंस्थान के संस्थापक त्रिभुवन पांडेय ने बताया कि आवंला पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए दान-पुण्य और पूजा-पाठ का फल अक्षय होता है यानी कभी समाप्त नहीं होता.
महिलाओं के द्वारा यह पूजा करने से संतान व सुख वैभव की प्राप्ती होती है. अक्षय नवमी के मौके पर लोगों ने गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान किए. लातेहार के ग्रामीण इलाकों में भी इस पर्व को बड़े उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया. लोगों ने सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की और लोकगीत गाये.
इस दिन कई परिवारों ने आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन भी किया. इसे बहुत ही शुभ माना जाता है. अक्षय नवमी पर तापा पहाड़ एवं इसके आसपास काफी भीड़ देखी गई. ठेला और खोमचा की कई दुकान सजी थी. तपा पहाड़ एवं झरिया डैम पर मेले सा दृश्य था.