लातेहार। महाशिव रात्रि का पर्व आगामी 26 फरवरी को है. लेकिन महाशिव रात्रि मेला का उदघाटन 24 फरवरी को ही कर दिया जायेगा. बाजारटांड़ के प्राचीन शिव मंदिर परिसर में लगने वाले इस मेले उदघाटन पुलिस अधीक्षक कुमार गौरव पूर्वाह्न दस बजे करेगें. मेला संवेदक नागेंद्र पाठक ने इसकी जानकारी दी. उन्होने बताया कि मेले की तैयारियां अब अंतिम चरण में है. बड़ा झूला के अलावा डिस्को डांस, नौका विहार, मौत का कुंआ, रेल, जंपिंग यार्ड के अलावा खेल व सौंदर्य प्रसाधन के काफी दुकानें लगायी गयी है.
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बता दें इस वर्ष का मेला संवेदक नागेंद्र पाठक को सर्वोच्च डाक लगाने (25 लाख, आठ हजार 500 रूपये ) पर नगर पंचायत के द्वारा आवंटित किया गया है. पिछले साल 2024 में महाशिवरात्रि मेले की बंदोबस्ती 25 लाख 7 हजार रूपये में मत्स्य जीवी सहयोग समिति को की गयी थी. जबकि वर्ष 2023 में इसी मेले की नीलामी मात्र आठ लाख 43 हजार रूपये में की गयी थी. पिछले तीन सालों में तकरीबन मेला की डाक की राशि तकरीबन तिगुनी बढ़ गयी है.
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अंग्रेजों के जमाने से लग रहा हैमहाशविरात्रिका मेला
बाजारटांड़ में लगने वाला महाशिवरात्रि मेला अंग्रेजों के जमाने से लग रहा है. जबकि यहां स्थापित प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास लगभग दो सौ वर्ष पुराना है. मंदिर के पुजारी मनोज दास शर्मा ने शुभम संवाद से बातचीत करते हुए बताया कि उनके पूर्वज बताते थे कि अंग्रेजी हुकुमत के काल में साल 1873-74 से बाजारटांड़ में शिवरात्रि का मेला लग रहा है. अंग्रेज आसपास के क्षेत्रों के लोगों से कृषि व अन्य लगान वसूल करने के लिए लोगो को बाजारटांड़ बुला कर कैंप लगाते थे. ग्रामीण यहां जुट कर अपने उत्पादों की खरीद बिक्री भी करते थे.
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उस समय अंग्रेजों का एक शिविर कुंरद ग्राम में हुआ करता था. धीरे-धीरे कारोबारियों ने बाजारटांड़ में सप्ताह में एक दिन अपनी दुकानें लगानी शुरू कर दी. इसमे काफी संख्या में लोग जुटते थे और अपनी जरूरतों की सामानों की खरीद-बिक्री करते थे. बाद में यही बाजारटांड़ में लगने वाले मंगलवारी साप्ताहिक हाट में तब्दील हो गया.
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मेला में जुआ व अश्लील कार्यक्रम नहीं करने देने की मांग की
बता दें किमहाशिवरात्रिमेला मेंबड़ेपैमाने पर जुआ खेला जाताहै.हब्बा-डब्बा का खेल भी यहां जोरों पर होताहै.यह एक प्रकार कापाशेका खेलहै.जुआखिलानेवाले गिरोह के कई सदस्य आपस में ही खेलते और जीतते रहतेहैं.प्रलोभन में आ कर लोग इसमें शामिल हो जातेहैं.इनमेंअधिकांशग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले भोले भाले आदिवासी फंसतेहैं.
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कई बार तो ग्रामीण मेले में अपनी बेची गयीमवेशियोंकी रकम भी जुआ और हब्बा डब्बा खेल कर हार जातेहैं.पिछले साल के मेले में ऐसे कई मामले प्रकाशमेआयेथे.इसी प्रकार मेलामेबूगी-बूगी व अन्य डांस शो केनाम परअश्लीलताभीपरेसीजातीहै.लोग टिकट खरीद कर इसे देखने जातेहैं.इसमेंअधिकांशभीड़स्कूलों के बच्चों की होतीहै.अश्लील नृत्य दे कर उनकी मानसिकता विकृत होतीहै.