गारू
बदलाव की राह पर गारू प्रखंड: जब आग उधार थी और सिनेमा किराये पर
Garu Block on the path of change: When fire was on loan and cinema was on rent.


उमेश यादव 




गारू प्रखंड कार्यालय में 1990 से कार्यरत कांति कुमारी बताती हैं, “हमारे समय में गाँव का जीवन पूरी तरह आपसी सहयोग पर आधारित था. तब प्रखंड कार्यालय में लोगों की आवाजाही कम होती थी, बल्कि कर्मियों को ही गाँव-गाँव जाकर कार्य करना पड़ता था. उस समय गाँव के लोग गेठी और चकवड़ साग जैसी पारंपरिक व प्राकृतिक चीजें खाते थे, जो पोषण से भरपूर थीं. अब भी मैं यहीं कार्यरत हूँ, लेकिन गाँव की पुरानी संस्कृति और कई पारंपरिक चीजें धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं.