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ग्रामीण महिलाओं को मोटे अनाज स्वादिष्ट व्यंजन बनाने की  ट्रेनिंग दी गयी

महुआडांड़, बरवाडीह व मनिका के 53 महिलाओं ने लिया भाग

मो अली राजा आलम, महुआडांड़

Latehar: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मोटे अनाजों श्री अन्न की संज्ञा दी है. देश- विदेश के बाजारों में इसकी काफी तेजी से माँग बढ़ी है.   वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष मनाया गया था. पोषक तत्वों से समृद्ध इन अनाजों को सुपरफूड के नाम से भी जाना जाने लगा है. इन अनाजों में बाजरा, ज्वार, मड़ुआ (रागी) कंगनी, कुटकी और सावाँ जैसे मोटे अनाज आते हैं. झारखंड के आदिवासी इलाकों में इनकी खेती 90 के दशकों तक वृहत पैमाने पर की जाती थी. लेकिन इन खाद्य अनाजों को गरीबों का आहार कहकर इसे तौहीनी का विषय बनाकर  गरीबों की थाली से दूर किया गया. लेकिन आज ये महंगे अनाज बाजार में जकड़ता जा रहा है. इसे पैदा करने वाले किसान इसकी महत्ता को समझा और 26 नवंबर को महुआडांड़ प्रखंड के चोरमुंंडा गांव में मिलेट मिक्सर मशीन से चावल तैयार करने, कंकड़ पत्थर साफ करने और स्वादिष्ट व्यंजन बनाने की ट्रेनिंग ग्रामीण महिलाओं को दी.  इस प्रशिक्षण में महुआडांड़ प्रखंंड के अलावा  मनिका और बरवाडीह प्रखण्ड के 13 गांवों से 53 महिलाओं ने भाग लिया. बतौर प्रशिक्षक आरआर नेटवर्क हैदराबाद से रवि कुमार मौजूद थे.

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प्रशिक्षण के दौरान सभी प्रतिभागी अपने साथ इस वर्ष कटाई किए गए गोंदली और मडुआ भी साथ लेकर आए थे.  महिलाओं ने प्रशिक्षण के दौरान ही प्रोसेसिंग कर अपने परिवार में खाद्य आहार बनाने हेतु लेते गए. इस प्रशिक्षण में सभी प्रतिभागी सावां (Little Millets) से कर्ड राईस अर्थात दही चावल और गोंदली का खिचड़ी बनाया और दोपहर के भोजन में इसे खाया.  खाने वालों ने इसका स्वाद चखा और अपने अनुभव साझा करते हुए कहा वाह क्या स्वाद है.

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बताते चलें कि महुआडांड़ और विशुनपुर  प्रखंड के इन पाठ इलाकों में प्रमुख रूप से खेती इन्हीं मोटे अनाजों खासकर गोंदली और मड़ुए की ही की जाती है. उचित जानकारी और बाजार के अभाव में यहाँ के किसान इसे स्थानीय बाजार में साहूकारों को औने पौने मूल्य में बेच देते हैं.  साहूकार उच्च दामों पर देश के बड़े बाजारों में बेचकर भारी भरकम मुनाफा कमाते हैं. चोरमुंंडा ग्राम की  सेबेस्तियानी  बताती हैं कि यहा गोंदली 30 रूपये में हमलोग साहूकारों को बेचते हैं. यदि इसी को हमलोग चावल बनाकर नेतरहाट में पर्यटन स्थल में बेचें तो 100 रुपये किलो बिक जाता है.  संस्था मल्टी आर्ट एसोसिएसन की कोशिश है कि इस इलाके की महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाया जाए.  इन इलाकों में वगैर किसी रासायनिक खाद के खेती किए जाने वालों फसलों जिसमें दलहन और तिलहन भी शामिल हैं.  उन्हे बाजार उपलब्ध कराया जाए. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में भी इन फसलों को जनवितरण प्रणाली के माध्यम से उपभोक्ताओं को वितरण की बात कही गई है.  लेकिन राज्य सरकार के उदासीन रवैये के कारण ऐसे अनाज खेती करने वाले कृषकों को समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है.

Shubham Sanwad

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