बालूमाथ (लातेहार)। खनिज सम्पदाओं से परिपूर्ण लातेहार जिले के बालूमाथ प्रखंड की धरती को कुदरत ने कई नेमतों से नवाजा है. इनमें से एक यहां की कोख में मौजूद अकूत खनिज संपदा है्. लेकिन विंडबना यह है कि यहां की बड़ी आबादी के जीवन जोखिम में डालने की वज़ह यही प्राकृतिक श्रोत बनते जा रहे हैं. क्षेत्र की बड़ी आबादी को खनिज संपदाओं का वास्तविक लाभ तब मिलता जब उन खनिजों पर आधारित उद्योग स्थापित किए जाते. परन्तु यह विडंबना रही कि उद्योग स्थापित होने के बजाय दूसरे राज्यों के उद्योगों को चलाने के लिए यहां के संसाधन ऊर्जा के श्रोत बनते चले गए. खनिज खास कर कोयला को खनन कर बाहर भेजने की आपाधापी ने स्थानीय लोगों के जीवन पर खतरे की तलवार लटका दी है. जिसकी चपेट में बड़ी संख्या में नौनिहाल इस क्षेत्र के भविष्य स्कूली बच्चे भी हैं. हालांकि 1990 के समय से सीसीएल द्वारा तेतरियखाड कोलियरी संचालित है, परन्तु पिछले दस वर्षों में जिस तेजी से क्षेत्र में कोलियरी और कोयले की परिवहन ने रफ्तार पकड़ी है. उतनी ही तेजी से धूल ओर कोल्डस्ट आम नागरिकों के जीवन में जहर घोलने का काम कर रही है. जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि खनन और परिवहन वाले क्षेत्रों में एलर्जी, टीबी समेत फेफड़े की सिकुड़न, दमा के साथ साथ स्वांस से संबंधित बीमारी, त्वचा रोग, नेत्र रोग, हेयरफॉल समेत अन्य बीमारियां अपनी गहरी जड़े जमा रही हैं. यही नहीं असाध्य बीमारियों के मरीजों में भी तेजी से वृद्धि हुई है. जिसका दुष्प्रभाव यह हुआ है कि हाल के दिनों में वेल्लोर, बंगलुरू, चेन्नई, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जाकर इलाज कराने वाले मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है. विशेषज्ञ इस ओर इशारा कर रहे हैं कि समय रहते अगर नहीं चेते तो भविष्य की पीढ़ी को विकास के नाम पर असाध्य बीमारियों को विरासत में छोड़ जायेंगे. कोल्डस्ट से होने वाली कोरोना से भी खतरनाक बीमारी निओमोकोनियोसिस का तेजी से बढ़ रहा है खतरा. कोल्डस्ट से होने वाली कोरोना से भी खतरनाक असाध्य बीमारी निओमोकोनियोसिस का तेजी से खतरा बढ़ रहा है. इस संबंध में बालूमाथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अमरनाथ प्रसाद बताते हैं कि धूल, स्टोन एवं कोल्डस्ट से फेफड़ों की लाईलाज बीमारी न्यूमोकोनियोसिस होने का खतरा होता है. कोरोना की तरह यह भी फेफड़े में प्रहार करते हुए उसे नष्ट कर देता है. इस बीमारी में स्वांस एवं मुंह के माध्यम से कोयले एवं पत्थर के धूल फेफड़ों में जाकर जमा हो जाती है. जिससे फेफड़ों को पर्याप्त हवा मिलना मुश्किल हो जाता है. जिससे फेफड़े धीरे धीरे सिकुड़ने व नष्ट होने लगते हैं. न्यूमोकोनिओसिस को ब्लैक लंग डिजीज या पॉपकॉर्न लंग भी कहा जाता है. यह लाइलाज है, इसका कोई इलाज नहीं है. पत्थर और कोल्डस्ट से यथासंभव बचने की कोशिश से ही इस असाध्य रोग के खतरे को कम किया जा सकता है.
बालूमाथ में नो इंट्री समय की मांग, जनता के साथ सड़क पर उतरने की नौबत आई तो पीछे नहीं हटेंगे: कालीचरण सिंह.
चतरा लोकसभा क्षेत्र के सांसद कालीचरण सिंह ने इस संबंध में बातचीत में कहा कि कोयला परिवहन से आम नागरिकों के साथ साथ स्कूली छात्रों के जीवन पर प्रतिकूल असर डाल रहा है. तासू, नवादा, चिरु, हुम्बू, झाबर, बालूमाथ के स्कूली बच्चे भी इसके शिकार हैं. लातेहार उपायुक्त से मिलकर इस संदर्भ में बात करना चाह रहा था, लेकिन उपायुक्त के अवकाश पर होने की वजह से मुलाकात नहीं हो पाई. बालूमाथ में सुबह से शाम 12 घंटे की नो इंट्री लगाया जाना समय की मांग है. इसे अब और टाला नहीं जा सकता. जनता के साथ सड़क पर उतरने की अगर नौबत आई तो पीछे नहीं हटेंगे. जनता का हित सर्वोपरि है. जनता के हितों की अनदेखी किसी भी परस्थिति में नहीं की जा सकती.
जनमानस के आकांक्षाओं पर कंपनियों को कार्य करना होगा: प्रकाश राम
क्षेत्रीय विधायक प्रकाश राम का इस संबंध में कहना है कि कोयला उत्खनन व परिवहन से लातेहार विधानसभा क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है. क्षेत्र की बड़ी आबादी इससे होने वाले दुष्परिणामों की चपेट में है. कंपनियां और उससे जुड़े लोग इसके स्थाई समाधान के बजाय तात्कालिक जनआक्रोश से बचने के लिए छोटे छोटे उपाय कर अपना उल्लू सीधा करने का काम करती हैं. उनमें परिवहन के दौरान तिरपाल ढकने, परिवहन पथ पर जल छिड़काव, स्पीड लिमिट इत्यादि शामिल हैं. जबकि दो चार दिनों में ही यही नियम तोड़े जाने लगते हैं. जनमानस के आकांक्षाओं के अनुसार कंपनियों को कार्य करना होगा. पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकार को पहल करते हुए कंपनियों को जागरूक नागरिकों का साथ लेते हुए दीर्घकालिक योजना बनाने के साथ उसपर अमल करना होगा. बालूमाथ में जहां तक नो इंट्री की बात है तो यह नितांत आवश्यक है. जनहित में अविलंब इसे लागू किया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त भी जितने उपाय हैं उसपर भी गंभीरता से अमल किया जाना चाहिए.